Friday, 15 June 2012


इक बार की बात है बृंदा वन का इक साधु अयोध्या की गलियो मे राधा कृष्णा राधा कृष्णा 
जप रहा था तो इक अयोध्या का साधु बोला :-अरे भाई क्या राधा कृष्णा,राधा कृष्णा 
लगा रखा है, अरे नाम ही जपना है सीता राम, सीता राम जपो ना क्या उस टेढ़े मेढ़े का नाम
लेते हो ?

इतना सुन कार बृंदा बन वाला साधु भड़क गया और बोला :- भाई जी जुबान संभाल कार बात
कीजिए,ये जुबान पान भी खिलाती है और लात भी खिलती है,आपने मेरे ईस्ट देव को टेढ़ा-मेधा
कैसे बोला?

अयोध्या का साधु बोला :-भाई ये बिल्कुल सत्या बात है की सचाई बहूत कड़वी होती है
लोग सहन नाही कार पाते है देखिए ना सच सुन कार आप कितने बौखला गये?
लेकिन :- सचाई च्हुप नाही सकती बनावत् की उसूलो से ,की खुशबो आ नाही सकती
कभी कागज की फूलो से?

भाई जी हम यह साबित कार सकते है की आपके कृष्ण टेढ़े मेढ़े ही है उसका कुच्छ भी तो
सीधा नाही उसका नाम टेढ़ा,उसका धाम टेढ़ा,उसका काम टेढ़ा ?.और वो खुद भी टेढ़ा है,
और मेरे राम को देखो कितने सीधे और कितने सरल है ?

बृंदावन वाला साधु :-अरे..अरे,ये आप क्या बोला नाम टेढ़ा,धाम टेढ़ा,काम टेढ़ा वो कैसे
आप सावित कार सकते है ?

अयोध्या वाला साधु :- बिल्कुल आप खुद ये काग़ज़ और कलम लो और कृष्ण
लिख कार देख लो……….अब बताओ ये नाम टेढ़ा है की नाही?
बृंदावन वाला साधु:- सो तो है……………..?

अयोधेया वाला साधु :- ठीक इसी तरह उसका धाम भी टेढ़ा है विश्वास नाही तो बृंदावन
लिख कार देख लो?
बृंदावन का साधु बोला:- चलो हम मान लिए की नाम और धाम टेढ़ा है लेकिन उनका काम
टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़े है ये आपने कैसे कहा ?

अयोध्या का साधु बोला :-प्यारे……….ये भी बतानी पड़ेगी? अरे भाई जमुना मे नहाती गोपियो
की वस्त्रा चुराना,रास रचना, माखन्न चुराना ये सब कोई शरीफो का सीधा सदा काम है क्या,
और आज तक कोई हमे ये बता दें की किसी ने भी उनको सीधे खड़े देखा है क्या?

फिर क्या था, बृंदावन के साधु को अपने कृष्ण से बहूत नाराज़गी हुई वो सीधे बृंदावन पहुचा
और और कृष्ण भगवान से लड़ाई तान दी बोला खूब ऊल्यू बनाया मुझे इतने दिनो से यह लो
अपनी लतुक कमरिया यह लो अपनी सोती अब हम तो चले अयोध्या सीधे सादे राम की शरण
मे,
कृष्ण मद मद मूशकूराते हुए बोले :-लगता है तुम्हे कोई भड़का दिया है मुझ से, ठीक है जाना
चाहते हो तो चले जाना पर यह बता तो दो की हम टेढ़े और राम सीधे कैसे है,और कृष्ण कुए
की और नहाने के लिए चल पड़े ?
बृंदावन वाला साधु बोला:-अजी आपका नाम टेढ़ा है आपका धाम टेढ़ा है और आपका तो सरा
काम भी टेढ़ा है आप खुद भी तो टेढ़े हो कभी आपको किसी ने सावधान मे खड़े नाही देखा होगा
है?
कृष्ण मंद मद मूशकूराते हुए कुए से पानी निकल रहे थे और अचानक पानी निकालने वाली
बाल्टी कुए मे गिर जाती है, कृष्ण अपने नाराज शिष्या को आश्रम से इक सरिया लाने को
कहते है शिष्या सरिया लाकर देता है, और कृष्ण उस सरिए से बाल्टी को निकलने की
कोशिश करते है ?

बृंदावन का साधु बोला:- आज मुझे मालूम हुआ की आप को अक्ल भी कोई खास नाही है
अजी सीधी सरिए से बाल्टी कैसे निकलेगी इतने देर से परेशान हो सरिए को थोड़ी टेढ़ी कार
लो फिर देखो बाल्टी कैसे बाहर आजाती है?

कृष्ण अपने स्वभाविक रूप से मंद मंद मूशकूराते हुए कहते है :- वेवकूफ शिष्या ज़रा सोचो
जब इस छोटे से कुए से इक सीधी सरिया इक छोटी सी बाल्टी को नाही निकल सकती तो,
तुम्हे इतने बड़े पाप की भवसागर से वो सीधे सादे राम कैसे निकाल पायेगे अरे आजकल के
वेवकूफ इंसानो तुम सब तो इतने गहरे पाप की सागर मे गीर चुके हो की इससे तुम्हे निकाल
पाना मेरे जैसे किसी टेढ़े मेढ़े का ही काम रह गया है

Sunday, 22 April 2012

सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ



मेरा अंतर तिमिर मिटाओसतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ
हे योगेश्वरहे परमेश्वरनिज कृपा दृष्टि बरसाओ
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ
हम बालक तेरे द्वार पे आयेमंगल दरश कराओ
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ
अंतर में युग युग से सोई चित्त-शक्ति को जगाओ
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ
सांची ज्योत जगे हृदय में सोहम नाद जगाओ
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ
शीश झुकाये करें तेरी आरतीप्रेम सुधा बरसाओ
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ
जीवन में श्री राम अविनाशीचरनन शरण लगाओ
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ

श्री निखिलेश्वरानंद कवचम्

श्री निखिलेश्वरानंद कवचम्




शिरः सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः |
नेत्रे निखिलेश्वरानन्द नासिका नरकान्तकः || १ ||
कर्णौ कालात्मकः पातु मुखं मन्त्रेश्वरस्तथा |
कण्ठं रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः || २ ||
स्कन्धौ कामेश्वरः पातु हृदयं ब्रह्मवर्चसः |
नाभिं नारायणो रक्षेत् उरुं ऊर्जस्वलोऽपि वै || ३ ||
जानुनि सच्चिदानन्दः पातु पादौ शिवात्मकः |
गुह्यं लयात्मकः पायात् चित्तंचिन्तापहारकः || ४ ||
मदनेशः मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः |
पूर्वं रक्षतु तंत्रेशः यंत्रेशः वारुणीँ तथा || ५ ||
उत्तरं श्रीधरः रक्षेत् दक्षिणं दक्षिणेश्वर |
पातालं पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं मे प्राण संज्ञकः || ६ ||
कवचेनावृतो यस्तु यत्र कुत्रापित गच्छति |
तत्र सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः || ७ ||
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं |
धनवान् बलवान् लोके जायते समुपासकः || ८ ||
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः |
नश्यन्ति सर्वविघ्नानि दर्शानात् कवचावृतम् || ९ ||
य इदं कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः |
सिद्धाश्रम पदारूढः ब्रह्मभावेन भूयते || १० ||
यह अद्भुत कवच गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द के तपोबल से प्रदीप्त महामंत्र है| प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नानोपरांत शुद्ध वस्त्र धारण कर संक्षिप्त गुरु पूजन कर इसका पाठ करने से साधक को सुरक्षा, आनंद, सौभाग्य तथा गुरुदेव का तेज प्राप्त होता है| दृढ़ निश्चय से युक्त हो शुद्ध अंतःकरण से संपन्न किया गया इस कवच का विधिवत् अनुष्ठान जीवन की विकटतम परिस्थितियों में भी साधक को विजय प्रदान करने में सक्षम है|



तांत्रोक्त गुरु पूजन

तांत्रोक्त गुरु पूजन




इस साधना के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर, स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें| बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर केसर से “ॐ” लिखी ताम्बे या स्टील की प्लेट रखें| उस पर पंचामृत से स्नान कराके “गुरु यन्त्र” व “कुण्डलिनी जागरण यन्त्र” रखें| सामने गुरु चित्र भी रख लें| अब पूजन प्रारंभ करें|
पवित्रीकरण
बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से स्वतः पर छिड़कें -
ॐ अपवित्रः पवित्रो व सर्वावस्थां गतोऽपि वा |
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ||
आचमन
निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -
ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
सूर्य पूजन
कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च |
हिरण्येन सविता रथेन याति भुनानि पश्यन ||
ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं |
जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ||
ध्यान
अचिन्त्य नादा मम देह दासं, मम पूर्ण आशं देहस्वरूपं |
न जानामि पूजां न जानामि ध्यानं, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ||
ममोत्थवातं तव वत्सरूपं, आवाहयामि गुरुरूप नित्यं |
स्थायेद सदा पूर्ण जीवं सदैव, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ||
आवाहन
ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |
ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |
ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |
स्थापन
गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -
श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः |
श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः |
श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः |
श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः |
श्री विष्णुदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः |
पाद्य
मम प्राण स्वरूपं, देह स्वरूपं समस्त रूप रूपं गुरुम् आवाहयामि पाद्यं समर्पयामि नमः |
अर्घ्य
ॐ देवो तवा वई सर्वां प्रणतवं परी संयुक्त्वाः सकृत्वं सहेवाः |
अर्घ्यं समर्पयामि नमः |
गन्ध
ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि |
ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – स्नानं समर्पयामि |
ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि |
ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि |
ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि |
ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि |
ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि |
ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतां समर्पयामि |
ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारां समर्पयामि |
पुष्प, बिल्व पत्र
तमो स पूर्वां एतोस्मानं सकृते कल्याण त्वां कमलया स
शुद्ध बुद्ध प्रबुद्ध स चिन्त्य अचिन्त्य वैराग्यं नमितां
पूर्ण त्वां गुरुपाद पूजनार्थं
बिल्व पत्रं पुष्पहारं च समर्पयामि नमः |
दीप
श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि |
श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि |
श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि |
श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि |
श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि |
श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि |
श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि |
श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि |
नीराजन
ताम्रपात्र में जल, कुंकुम, अक्षत अवं पुष्प लेकर यंत्रों पर समर्पित करें -
श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि |
श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि |
श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि |
श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि |
श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि |
पञ्च पंचिका
अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -
पञ्चलक्ष्मी
श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
पञ्चकोश
श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
पञ्चकल्पलता
श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
पञ्चकामदुघा
श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
पञ्चरत्न विद्या
श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री मन्मालिनी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
श्री मन्मालिनी
अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके -
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः | कं खं गं घं ङं | चं छं जं झं ञं | टं ठं डं ढं णं | तं थं दं धं नं | पं फं बं भं मं | यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः |
मूल मंत्र
ॐ निं निखिलेश्वरायै ब्रह्म ब्रह्माण्ड वै नमः |
इस मंत्र का मूंगा माला से १०१ माला जप करें |
प्रार्थना
लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् |
शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं |
क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं |
सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं |
अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः |
तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ||
समर्पण
ॐ सहनावतु सह नौ भुनत्तु सहवीर्यं करवावहै,
तेजस्विनां धीतमस्तु मा विद्विषावहै |
ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतं |
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म कर्म समाधिना |
ॐ शान्तिः | शान्तिः || शान्तिः |||



Sunday, 12 February 2012

LOVE GURU JI



जितना दिया सरकार ने, उतनी मेरी औकात नहीं,
यह तो करम है मेरे निखिल का, वरना मुझमें ऐसी कोई बात नहीं..


ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः